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लिव-इन रिलेशनशिप अधिकार: भारत में बालिग कपल्स को सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप तेजी से बढ़ रहे हैं, खासकर उन युवाओं में जो समाजिक दबाव से ऊपर उठकर स्वतंत्रता और अपनी पसंद के साथ रहने का निर्णय लेते हैं। सामाजिक चुनौतियों के बावजूद भारतीय न्यायपालिका ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि दो बालिग अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं—यह उनका संवैधानिक अधिकार है।
इस ब्लॉग में हम बताएँगे कि लिव-इन कपल्स के कानूनी अधिकार क्या हैं, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स ने इस विषय में क्या फैसले दिए हैं, और Delhi Law Firm कैसे कपल्स को पुलिस सुरक्षा और कानूनी सहायता प्रदान करता है।
लिव-इन रिलेशनशिप अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला
प्रसिद्ध निर्णय एस. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- लिव-इन रिलेशनशिप कोई अपराध नहीं है।
- इसे “अनैतिक” बताकर किसी तरह की आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- दो बालिग अपनी इच्छा से साथ रह सकते हैं—यह उनका व्यक्तिगत अधिकार है।
इस फैसले ने पूरे देश में लिव-इन कपल्स की सुरक्षा का मजबूत आधार तैयार किया।
हाईकोर्ट्स ने भी दोहराया: यह मौलिक अधिकार है
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट, और इलाहाबाद हाईकोर्ट सहित कई अदालतों ने बार-बार कहा है:
- यदि दो बालिग साथ रहना चाहते हैं तो यह उनका मौलिक अधिकार है।
- राज्य का कानूनी कर्तव्य है कि उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए।
- परिवार का विरोध, धमकियाँ या सामाजिक दबाव संवैधानिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता।
इन फैसलों से स्पष्ट होता है कि लिव-इन कपल्स को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत पूरी सुरक्षा प्राप्त है।
लिव-इन कपल्स को संरक्षण की आवश्यकता क्यों होती है?
कई कपल्स को आज भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- परिवार का विरोध
- हॉनर-बेस्ड हिंसा या धमकी
- सोशल प्रेशर
- हिंसा या जबरन अलग करने की कोशिश